ऐसा लगता है की एक साज़िश के तहत भारतीय मुसलमानो की तारिख भुलाई जा रही है सोचा कुछ वाक़ियात याद दिला दूँ ताकि आप भी अपनी नस्लों तक यह बात पहुँचा सको।
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भारत की आज़ादी में मुसलमानो का खून, उनकी हिस्सेदारी और कुर्बानिया कई फीसद ज़्यादा है उनकी तादाद के हिसाब से।
क्या आपको पता है की दिल्ली के इंडिया गेट पर 95300 आज़ादी के लिए लड़ने वालो के नाम लिखे हुए है जिसमे से 61945 मुसलमान है ?
लेकिन बदक़िस्मती से मीडिया में आज़ादी की जंग में मुसलमानो की क़ुर्बानियों को इतनी तवज्जो नहीं दी जाती या शायद जान बुज़ कर इसे छुपाया जा रहा हे ?
मुसलमानो ने ही अंग्रेज़ो के खिलाफ सबसे पहले मुखबिरी की, मुसलमानो ने ही अंग्रेज़ो के खिलाफ सबसे पहले हथियार उठाए|
1772 में शाह अब्दुल अज़ीज़ ने अंग्रेज़ो के खिलाफ फतवा देते हुए एलान किया की अंग्रेज़ो की ग़ुलामी हराम है और हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है की वो अपने मुल्क की आज़ादी के लिए खुद को क़ुर्बान करदे |
1780 और 1790 में आज़ादी के पहली जंग हैदर अली और उनके बेटे टीपू सुलतान ने लड़ी जिसमे मैसूरी रॉकेट्स का इस्तेमाल हुआ जो सबसे पहले लोहे के बने हुए रॉकेट्स थे जिनका मिलिटरी के लिए बहुत कामयाब तरीके से इस्तेमाल किया गया अंग्रेज़ो के खिलाफ।
1857 में होने वाली जंग की प्लानिंग एक मुसलमान ने की थी जिसका नाम मौलवी अहमदुल्लाह शाह था वो भारत के अकेले इंसान थे जिन पर अंग्रेज़ो ने 50000 का इनाम रखा था, ये रकम इतनी बड़ी थी की राजा जगन्नाथ ने लालच में आकर अहमदुल्लाह शाह की मुखबिरी कर दी और अंग्रेज़ो ने उन्हें शहीद कर दिया |
बहुत कम लोग जानते है की 1857 में शहीद होने वाले 90 % शहीद मुसलमान थे, जालियांवाला बाग़ में जनरल डायर की गोलियों का निशाना बनने वाले ज़्यादातर लोग मुसलमान थे |
भारत की आज़ादी की क़यादत करने वाली तंज़ीम इंडियन नेशनल कांग्रेस के 9 से ज़्यादा प्रेसिडेंट मुसलमान थे |
गांधी ने अफ्रीका में जहां वकालत की पढाई की वो कॉलेज भी एक भारतीय मुसलमान का था और जब वो भारत में आए तो उन्होंने अली ब्रदर्स के साथ काम करना शुरू किया जो की मुसलमान थे |
बहुत कम लोग जानते है की 1921 में केरल के मुसलमानो के ज़रिये लड़ी गई जंग में 3000 से ज़्यादा मुसलमान शहीद हुए थे, और 50000 मुसलमानो को जेल में क़ैद कर दिया था ये इहतिजाज़ “मोपलाह आंदोलन” के नामसे जाना जाता है |
1942 में भारत छोडो इहतिजाज़ की तदबीर मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने तैयार की थी, यूनिटी इन डाइवर्सिटी “विविधता में एकता” भी उन्ही की सोच थी |
संविधान निर्माता डॉ भीमराव आंबेडकर को पहचान दिलाने में मुसलमानो का बड़ा योगदान रहा है, 1946 में जब डॉ भीमराव आंबेडकर दलित होने की वजह से बुरी तरह से इलेक्शन हार गए तो बंगाल मुस्लिम लीग ने उन्हें अपने इलाक़े से इलेक्शन लड़ने की दावत दी और मुसलमानो ने उन्हें वोट देकर जिताया, इस तरह डॉ भीमराव आंबेडकर विधान सभा का हिस्सा बन सके अगर मुसलमान उन्हें इलेक्शन में वोट देकर ना जिताते तो उन्हें संविधान लिखने का कभी मौका नहीं मिलता |
भारत की आज़ादी के लिए सबसे ज़्यादा इबारत , शायरी, और किताबे मुसलमानो ने ही लिखी, अल्लामा इक़बाल का लिखा हुआ सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा अब तक लोगो की जुबां पर है |
मुल्क के लिए शहीद होने वाला पहला जर्नालिस्ट मौलाना मीर बाकीर एक मुसलमान था |
भारत की आज़ादी के लिए मुस्लिम राजा और महाराजाओ ने अपने ख़ज़ाने खोल दिए कोलकाता के हाजी उस्मान सईद ने अपना सब कुछ भारत की आज़ादी के लिए क़ुर्बान कर दिया, हाजी उस्मान की अमीरी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की 1920 तक कोलकाता में बनने वाला हर स्कूल और हर बड़ी बिल्डिंग उन्ही की थी, कोलकाता के पहले सुपरस्टोर कॅश बाजार की बुनियाद भी उन्ही ने राखी थी, लेकिन बाद में उन्हों ने अपनी सारी दौलत मुल्क को दान करदी और खुद एक किराए के मकान में रहने लगे |
M.K.M अमीर हमजा और मेमन अब्दुल हमीद युसूफ मर्फ़ानी जैसे मुसलमानो ने अपनी अरबों रूपये की संपत्ति देश की आज़ादी के लिए इंडियन नेशनल आर्मी (INA) में क़ुर्बान कर दी |
इंडियन नेशनल आर्मी (INA) का सबसे जांबाज़ सिपाही, सियासतदां चीफ अफसर और कमांडर का नाम शाह नवाज़ ख़ान था ।
आपको पता होना चाहिए की नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अफ़ग़ानिस्तान में बनाई सरकार में 9 में से 5 मंत्री मुसलमान थे|
अशफ़ाक़ुल्लाह खान को अंग्रेज़ो के खिलाफ साजीश करने हे तहत महज़ 27 साल की उम्र में फ़ासी दे दी गई।
भारत का झंडा बनाने वाली मोहतरमा का नाम सुरैया तय्यब था।
भारत की आज़ादी के लिए मुल्क भर में मौजूद मस्जिदों को किलो की तरह इस्तेमाल किया गया, इन मस्जिदों में सुबह शाम हर वक़्त भारत की आज़ादी के लिए एलान हुआ करते थे , आज़ादी की जंग लिए उस वक़्त कोई भी अपनी इबादतगाहो का इस्तेमाल नहीं कर रहा था जब मुसलमान अपनी मस्जिदों का इस्तेमाल कर रहे थे , जब इमाम मस्जिदों में आज़ादी की जंग के लिए एलान कर रहे थे तब ब्रिटिश आर्मी ने मस्जिद के सारे मुसलमानो को गोलियों से मार कर शहीद कर दिया, आज़ादी के वक़्त कोई मस्जिद ऐसी नहीं थी की जिसकी दीवारों पर मुसलमानो का खून ना लगा हो|
मुसलमानो ने 800 सालो से ज़्यादा हुकूमत की इस मुल्क पर लेकिन कुछ नहीं चुराया यहाँ से, जैसे अंग्रेजो, डच, फ्रेंच ने चुराया और आज भी कुछ काले अंग्रेज चुरा कर भाग रहे है यहाँ से और कुछ लोग उनकी मदद भी कर रहे हे।आप ये जान ले की पूरी दुनिया की कूल पैदावार का 25 % माल भारत में पैदा होता था, इसी वजह से भारत सोने की चिड़िया कहलाता था मुसलमानो के वक़्त |
मुसलमान यहाँ रहे, हुकूमत की, मरे भी यहाँ और दफ़न भी इसी मिटटी में हुए और उनकी औलादे आज भी यहाँ रहती है उन्होंने भारत में तालीम, मकानात, अद्ल व इन्साफ, सियासती ढांचा और बेहतरीन मैनेजमेंट की बुइयाद पर की बुनियाद पर मुल्क की GDP 25 % तक कर दी।
अंग्रेजो के खिलाफ मुसलसल 7 सालो तक जंग लड़ने वालो का नाम इस्माइल साहेब, मरुदा नयगम था ।
भारत की आज़ादी के लिए डच, अंग्रेजो के खिलाफ जंग लड़ने वाले पहले सेलर जहाज़ी V.O.C कापलोतोया को तो अक्सर जानते है लेकिन कितने लोग जानते है फ़क़ीर मुहम्मद राठेर को जिन्होंने उन्हें अपना जहाज़ दिया ?
जब V.O.C कापलोतोया को अंग्रेजो ने गिरफ्तार कर लिए तो उन्हें अंग्रेजो की क़ैद से बचाने वाले एक शख्श को गोली मार दी गई जिनका नाम मुहम्मद यासीन था।
आज़ादी के लिए लड़ने वाले तिरुप्पुर कुमारन (“कोड़ी कटा कुमारन”) को अंग्रेजो ने उनके साथियो के साथ गिरफ्तार कर लिया था जिनके नाम थे अब्दुल लतीफ, अकबर अली, मोहिदीन ख़ान, अब्दुल रहीम, वावू साहेब, अब्दुल लतीफ़।
भारत की आज़ादी में मुसलमानो की क़ुरबानियों की कोई इन्तहा नहीं और ना हीं इसका इंकार नहीं क्या जा सकता है | वही इंकार करेगा जो मुसलमानो की तारिख को बदलने की कोशिश करता है। इन सब के अलावा ऐसे करोडो मुसलमान है जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया, सच तो है की भारत की आज़ादी मुसलमानो के बगैर मुमकिन ही नहीं थी …
मुझे लगता है की आज के इस नफरती और दुश्मनी के दौर में ये सारी सच्चाई हमे जान ने की बहुत ज़रुरत है और दूसरे मुसलमानो तक पहुंचने की भी ज़रुरत है |
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