होली (Holi) आने वाली थी, लेकिन इस बार रवि के घर में कोई तैयारियाँ नहीं हो रही थीं।
ना गुलाल खरीदा गया, ना मिठाइयाँ बनीं, ना आँगन में पिचकारियों की चहक थी।
पूरे घर में बस एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था।
रवि की माँ हर साल सबसे पहले होली की रंगोली बनाती थीं, लेकिन इस बार उन्होंने रंगों को हाथ तक नहीं लगाया।
रंगों से भरा ये त्योहार उनके लिए बेरंग हो चुका था…
आखिर ऐसा क्या हुआ था? क्यों इस बार घर में होली नहीं मनाई जा रही थी?
अध्याय 1: होली(Holi) से पहले आया वो अंधेरा
छह महीने पहले, रवि का बड़ा भाई अजय एक सड़क हादसे में दुनिया छोड़कर चला गया था।
अजय ही था जो हर साल पूरे मोहल्ले में सबसे पहले गुलाल उड़ाता था, सबसे ऊँची आवाज़ में हंसता था, और सबको जबरदस्ती रंगों में भिगो देता था।

लेकिन इस बार…
- पापा की आँखों में अजय की यादें थीं।
- माँ की आँखें हर सुबह भीग जाती थीं।
- रवि ने खुद से वादा कर लिया था—”इस बार होली नहीं खेलूँगा।”
होली के बिना यह घर अब सूना लगने लगा था।
अध्याय 2: रंगों की पुकार
रवि की सबसे प्यारी दोस्त नेहा हमेशा उसे समझाती थी।
“अजय भैया ने हमेशा कहा था कि होली जिंदगी का त्योहार है, और तुम लोग इसे छोड़ना चाहते हो?”
लेकिन रवि चुप ही रहता।

“अगर हम होली नहीं मनाएँगे, तो क्या भैया वापस आ जाएँगे?” उसने एक दिन गुस्से में कह दिया।
नेहा ने एक गहरी सांस ली और कहा—
“नहीं रवि… लेकिन अगर हम उनके बिना खुश रहना छोड़ देंगे, तो क्या उन्हें अच्छा लगेगा?”
रवि कुछ नहीं बोला, लेकिन उसकी आँखों में हल्का सा बदलाव था।
अध्याय 3: जब रंग खुद चले आए
होली के दिन सुबह जब रवि घर के बाहर बैठा था, तभी उसे आँगन से बच्चों की हंसी सुनाई दी।

पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया था।
- बच्चों ने रंगों से भरी पिचकारी से उसकी दीवार रंग दी।
- किसी ने गुलाल उसके दरवाजे पर फेंक दिया।
- गली में अजय की पसंदीदा होली वाली गाना बजने लगा—”होली खेले रघुबीरा…”
रवि ने खुद को रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन…
💨 अचानक किसी ने पीछे से गुलाल उसकी पीठ पर मल दिया!
रवि ने चौंककर देखा—माँ खड़ी थीं।

उनकी आँखों में आँसू थे, लेकिन उनके चेहरे पर एक मुस्कान थी।
“अजय होता, तो वो भी यही करता।” उन्होंने धीरे से कहा।
उस एक पल में जैसे सारा दर्द बह गया।
अध्याय 4: होली में मिली नई सीख
रवि उठा, गुलाल उठाया और सबसे पहले पापा के गालों पर हल्का सा रंग लगा दिया।
पापा की आँखें भर आईं, लेकिन इस बार वो आँसू गम के नहीं, खुशी के थे।
धीरे-धीरे, घर फिर से रंगों से भर गया।
रवि ने नेहा को देखा और मुस्कुराकर कहा—
“सही कहा था तुमने… होली छोड़ने से भैया वापस नहीं आते, लेकिन मनाने से उनकी यादें और भी खूबसूरत हो जाती हैं।”
उस दिन, अजय की पसंदीदा होली खेली गई, लेकिन इस बार आंसू ग़म के नहीं, प्यार और यादों के थे।
रंगों का असली मतलब
✅ होली सिर्फ़ रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि खुशियों को मनाने का नाम है।
✅ जिन्हें हम खो चुके हैं, वे चाहते हैं कि हम उनकी यादों को हंसी के रंगों से भरें, न कि ग़म से।
✅ होली मनाने का असली तरीका अपनों के साथ रंगों को जीना है।
👉 अगर यह कहानी आपको छू गई, तो इस होली पर उन लोगों को ज़रूर रंग लगाएँ जिनकी ज़िंदगी बेरंग हो गई है। 💖🎨✨
✨ “इस बार होली खेलो, क्योंकि कोई न कोई तुम्हारे रंग का इंतज़ार कर रहा है!” ✨
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