कुछ दरवाज़े हमेशा के लिए बंद ही रहने चाहिए, और कुछ राज़ कभी सामने नहीं आने चाहिए। मेरे दादाजी का पुराना फोटोग्राफी स्टूडियो एक ऐसा ही दरवाज़ा था, जिसके पीछे एक भयानक सच दफ्न था। हम तीन दोस्त बस एक रोमांच की तलाश में उस वीरान स्टूडियो में दाखिल हुए थे।
हमें क्या पता था कि वहाँ दीवारों पर टंगी तस्वीरों के अलावा भी कोई हमें देख रहा है।
हमें क्या पता था कि वहाँ रखा एक खूबसूरत आईना सिर्फ चेहरा नहीं, बल्कि ज़िंदगियाँ देखता है… और उन्हें छीन लेता है। यह कहानी है उस एक रात की, जब हमने एक ऐसे आईने का सामना किया जो एक श्राप की खिड़की थी, और जहाँ हमारी परछाइयाँ हमेशा के लिए कैद हो गईं।
क्या था उस आईने का राज जानने के लिए चलिए पढ़ते है –
छल का आईना
मेरे दादाजी, अमृतलाल, अपने समय के एक माने हुए फोटोग्राफर थे। लेकिन उनका हुनर जितना मशहूर था, उतना ही रहस्यमयी उनका स्टूडियो था। कहते थे कि वह सिर्फ तस्वीरें नहीं, बल्कि लोगों की परछाइयाँ कैद करते थे। दशकों पहले, एक रात वह स्टूडियो हमेशा के लिए बंद हो गया और मेरे दादाजी ने फिर कभी कैमरा नहीं छुआ।
यह स्टूडियो अब हमारी पुरानी हवेली का एक वीरान हिस्सा था। मेरे दोस्त, रोहन और प्रिया, जो हमेशा रोमांच की तलाश में रहते थे, मुझे वहाँ जाने के लिए मना ही लिया।
“माया, सोचो तो, एक भूला हुआ स्टूडियो! हमें वहाँ कुछ अनोखा मिल सकता है,” रोहन ने उत्साह से कहा।
प्रिया ने चिंता जताते हुए कहा, “पर तुम्हारे दादाजी ने इसे बंद क्यों किया था? मुझे यह जगह ठीक नहीं लगती।”
“बस कुछ पुरानी यादें होंगी,” मैंने खुद को और उन्हें दिलासा देते हुए कहा, पर मेरे दिल में एक अनजाना सा डर था।
स्टूडियो का दरवाज़ा एक दर्दनाक चीख के साथ खुला। अंदर हवा में पुराने कागज़ों, फिक्सर केमिकल और एक अजीब, मीठी सी सड़ांध की गंध थी। दीवारों पर टंगी तस्वीरों में लोगों के चेहरे धूल के पीछे से हमें घूर रहे थे।
एक कोने में, लाल मखमल के कपड़े से ढकी एक चीज़ रखी थी। रोहन ने कपड़ा हटाया। उसके नीचे एक बड़ा, नक्काशीदार विक्टोरियन आईना था। उसका शीशा इतना साफ था, जैसे उसे रोज़ कोई पोंछता हो।
“अजीब है,” प्रिया ने फुसफुसाया। “हर चीज़ पर धूल है, पर यह आईना बिल्कुल साफ है।”
हम तीनों ने आईने में देखा। एक पल के लिए, मुझे लगा कि आईने में हमारी परछाइयों के पीछे एक और धुंधली परछाई खड़ी है, एक औरत की। मैंने आँखें झपकीं, और वह गायब हो गई।
“तुम लोगों ने वो देखा?” मैंने काँपती आवाज़ में पूछा।
“क्या देखा? वहम होगा तुम्हारा,” रोहन ने कहा, पर उसकी नज़रें अब भी आईने पर टिकी थीं।
तभी, हमारी नज़र एक पुरानी डायरी पर पड़ी, जो आईने के पास रखी थी। वह मेरे दादाजी की थी। हमने उसे खोला। शुरुआती पन्ने फोटोग्राफी की तकनीकों के बारे में थे, लेकिन आखिरी पन्नों की लिखावट काँपती हुई और बिखरी हुई थी।
तारीख: 15 अक्टूबर, 1952
“आज मैंने अपनी सबसे बड़ी गलती कर दी। वह औरत, ‘चंद्रिका’, अपनी तस्वीर खिंचवाने आई थी। उसकी खूबसूरती अलौकिक थी, लेकिन उसकी आँखें… उसकी आँखों में एक अजीब सी भूख थी। मैंने उसकी तस्वीर ली, लेकिन जब तस्वीर डेवेलप हुई, तो उसमें उसका चेहरा नहीं, बल्कि एक भयानक, बूढ़ी औरत का चेहरा था।”
तारीख: 17 अक्टूबर, 1952
“वह रोज़ आती है। वह आईने के सामने घंटों खड़ी रहती है, और कहती है कि आईना उसकी जवानी लौटा देगा। मैंने उसे मना किया, पर वह नहीं मानती। वह कहती है कि आईना भूखा है, उसे एक नई परछाई चाहिए।”
आखिरी एंट्री: 21 अक्टूबर, 1952
“आज वह आईने के सामने खड़ी होकर अपना नाम पुकार रही थी—’शूर्पणखा’। वह कोई औरत नहीं, एक आत्मा है। वह आईने में कैद है और बाहर आने के लिए एक शरीर चाहती है। मैंने आईने को इस लाल कपड़े से ढक दिया है। भगवान करे, कोई इसे कभी न हटाए।”
हमारे हाथ काँप रहे थे। “शूर्पणखा” – यह रामायण की वह राक्षसी थी जिसकी नाक काट दी गई थी, जो अपनी सुंदरता वापस पाने के लिए कुछ भी कर सकती थी।
“हमें यहाँ से निकलना चाहिए,” प्रिया ने कहा।
तभी, हमारे पीछे से एक धीमी, मीठी हँसी की आवाज़ आई। हमने पलटकर देखा। आईने के सामने कोई नहीं था। लेकिन आईने के अंदर… हमारी परछाइयों के ठीक पीछे, एक खूबसूरत औरत खड़ी मुस्कुरा रही थी। वही चंद्रिका।
“अब बहुत देर हो चुकी है,” आईने के अंदर से उसकी आवाज़ आई, जो स्टूडियो में गूँज रही थी।
अचानक, मेरे गले में एक बर्फीला दबाव महसूस हुआ। मुझे लगा जैसे कोई अदृश्य हाथ मेरे गले में कुछ पहना रहा है। मैंने अपने गले को छुआ। वहाँ एक हार था, जो पहले नहीं था।
रोहन और प्रिया खौफ से मुझे घूर रहे थे। “माया… तुम्हारा चेहरा…” रोहन ने हकलाते हुए कहा।
मैं भागी और आईने में देखा। मेरे चेहरे पर धीरे-धीरे दरारें पड़ रही थीं, जैसे कोई पुराना प्लास्टर टूट रहा हो। मेरी आँखें धँस रही थीं, और मेरे बाल सफेद हो रहे थे। आईने में खड़ी चंद्रिका की परछाई और भी जवान और चमकदार होती जा रही थी।
“यह आईना परछाइयाँ नहीं, ज़िंदगियाँ बदलता है!” आईने से आवाज़ आई। “तुम जितनी देर इसके सामने रहोगी, तुम्हारी जवानी यह मुझे देता रहेगा।”
वह मेरी उम्र छीन रही थी।
“भागो, माया! आईने से दूर हो जाओ!” रोहन चिल्लाया।
उसने और प्रिया ने मुझे पकड़कर खींचने की कोशिश की, लेकिन मेरे पैर ज़मीन पर जम गए थे। एक अदृश्य शक्ति मुझे आईने के सामने रोके हुए थी।
तभी रोहन को दादाजी का पुराना कैमरा दिखा, जो ट्राइपॉड पर लगा था। उसे दादाजी की डायरी की एक लाइन याद आई – “यह कैमरा सिर्फ तस्वीरें नहीं, परछाइयाँ कैद करता है।”
“प्रिया! उस कैमरे का फ्लैश तैयार करो!” वह चिल्लाया और कैमरे को सीधे आईने की तरफ घुमा दिया।
“नहीं!” आईने के अंदर से चंद्रिका की दर्दनाक चीख गूँजी।
रोहन ने बटन दबाया। एक तेज़, अंधी कर देने वाली फ्लैशलाइट चमकी। एक पल के लिए, कमरा सफेद रोशनी से भर गया।
और फिर, खामोशी।
आईने में अब चंद्रिका की परछाई नहीं थी। वह गायब हो चुकी थी। मेरे चेहरे से दरारें मिट गईं और मैं वापस सामान्य हो गई। मेरे गले से हार भी गायब था।
लेकिन जब हमने आईने में देखा, तो हमारा खून जम गया।
आईने में अब हम तीनों की परछाई नहीं दिख रही थी। शीशा खाली था। वह बस एक साधारण आईना था, जो अब कुछ भी नहीं दिखाता था।
हम स्टूडियो से बाहर भागे और फिर कभी पलटकर नहीं देखा।
आज भी, सालों बाद, जब मैं किसी आईने के सामने खड़ी होती हूँ, तो मुझे एक डर लगता है। मैं अपनी परछाई देखती हूँ, उसे छूती हूँ, यह यकीन करने के लिए कि वह मेरी ही है। क्योंकि उस रात, उस स्टूडियो में, उस कैमरे के फ्लैश ने उस आत्मा को तो शायद कैद कर लिया…
…लेकिन हमारी परछाइयाँ वहीं छूट गईं।
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पेशे से एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर, और दिल से एक कहानीकार हैं। अपने बच्चों को बचपन की कहानियाँ सुनाते हुए, उन्हें एहसास हुआ कि इन सरल कहानियों में जीवन के कितने गहरे सबक छिपे हैं। लेखन उनका शौक है, और KisseKahani.in के माध्यम से वे उन नैतिक और सदाबहार कहानियों को फिर से जीवंत करना चाहते हैं जो उन्होंने अपने बड़ों से सुनी थीं। उनका मानना है कि एक अच्छी कहानी वह सबसे अच्छा उपहार है जो हम अपनी आने वाली पीढ़ी को दे सकते हैं।