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बारिश वाली वो रात

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कुछ रातें हमारी ज़िंदगी में सिर्फ तारीख बदलने के लिए नहीं आतीं, बल्कि हमें बदलने के लिए आती हैं। उसे नहीं पता था कि दरवाज़े पर होने वाली वो दस्तक सिर्फ एक डिलीवरी बॉय की नहीं, बल्कि एक ऐसी हकीकत की होगी जो उसके सोचने का नज़रिया हमेशा के लिए बदलने वाली थी।

क्या हुआ था उस रात जानने के लिए चलिए पढ़ते है –

बारिश वाली वो रात



घड़ी की सुइयाँ रात के ग्यारह बजा चुकी थीं। मुंबई की तेज़ बारिश खिड़की के शीशों पर किसी बेचैन धुन की तरह बज रही थी। अपने लैपटॉप की नीली रोशनी में डूबी अन्या का सिर काम के बोझ से फटा जा रहा था। आज ऑफिस में एक ज़रूरी प्रोजेक्ट की डेडलाइन थी, और इस चक्कर में उसने दिन भर कुछ नहीं खाया था।

भूख और झुंझलाहट के बीच उसने अपना फ़ोन उठाया और झटके से ज़ोमैटो ऐप खोला। ‘इस बारिश में कौन आएगा, पर कोशिश करने में क्या हर्ज़ है,’ उसने सोचा और अपना पसंदीदा खाना ऑर्डर कर दिया।

अनुमानित समय चालीस मिनट था।

चालीस मिनट, पचास मिनट हुए, फिर पूरा एक घंटा बीत गया। अन्या का सब्र अब जवाब दे रहा था। उसका गुस्सा सातवें आसमान पर था। ‘बस आ जाए एक बार, आज तो इसे वन-स्टार रेटिंग ही दूँगी! न समय की कद्र है, न काम की…’ वह मन ही मन बड़बड़ा रही थी।

तभी दरवाज़े की घंटी बजी।

अन्या ने गुस्से में दरवाज़ा खोला और सामने खड़े लड़के को देखकर एक पल के लिए ठिठक गई। बीस-इक्कीस साल का एक लड़का, सिर से पाँव तक बारिश में भीगा हुआ, ठंड से बुरी तरह काँप रहा था। उसके हाथ में खाने का पैकेट था, और चेहरे पर डर और माफ़ी का मिला-जुला भाव।

अन्या अपना सारा गुस्सा भूल गई। वह कुछ कहती, उससे पहले ही लड़के ने काँपती हुई आवाज़ में कहा, “सॉरी मैडम… बहुत देर हो गई। रास्ते में पानी बहुत ज़्यादा था और मेरी साइकिल भी पंचर हो गई थी। मुझे दौड़कर आना पड़ा।”

उसकी आवाज़ में इतनी सच्चाई और बेबसी थी कि अन्या का दिल पसीज गया। उसने दरवाज़े से हटते हुए कहा, “अरे कोई बात नहीं। तुम अंदर आ जाओ पहले। इस तरह भीग गए हो।”

लड़का झिझकते हुए अंदर आया। अन्या ने उसे एक तौलिया दिया और पीने के लिए पानी। जब वह पानी पी रहा था, तो अन्या की नज़र उसके पुराने से बैग पर पड़ी, जो एक तरफ से फट गया था। उस फटे हुए हिस्से से एक मोटी सी किताब का कोना बाहर झाँक रहा था। किताब का नाम था – ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा: एक समग्र अध्ययन’।

अन्या ने हैरान होकर पूछा, “तुम… पढ़ाई भी करते हो?”

लड़के के चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान आई। उसने धीरे से सिर हिलाया। “जी मैडम। मेरा नाम सुनील है। दिन में ये काम करता हूँ, ताकि घर का खर्चा और छोटी बहन की स्कूल की फीस निकाल सकूँ। और जब भी किसी रेस्टोरेंट में ऑर्डर का इंतज़ार करता हूँ, या रात में जब काम खत्म हो जाता है, तो थोड़ा पढ़ लेता हूँ।”

उसने एक गहरी साँस ली और कहा, “बस एक बार अफसर बन जाऊँ, तो शायद ये रातें बदल जाएँगी।”

अन्या खामोशी से उसे सुनती रही। उसे अपने गुस्से पर शर्म आ रही थी।

सुनील ने आगे कहा, “आज देर इसलिए भी हो गई क्योंकि रास्ते में एक फ्लाईओवर के नीचे, जहाँ स्ट्रीटलाइट जल रही थी, मैं बस दो मिनट के लिए रुक गया था। सोचा बारिश हल्की होगी तो ये दो पन्ने पूरे कर लूँगा। पर वक़्त का पता ही नहीं चला।”

यह एक वाक्य नहीं, बल्कि किसी के संघर्ष और सपनों की पूरी दास्ताँ थी।

अन्या की आँखें नम हो गईं। जिसे वह बस एक लापरवाह ‘डिलीवरी बॉय’ समझ रही थी, वह असल में एक योद्धा था, जो अपनी किस्मत से हर रोज़ लड़ रहा था। जिस चालीस मिनट के इंतज़ार ने उसे इतना परेशान कर दिया था, उस चालीस मिनट में किसी ने अपने सपनों को ज़िंदा रखने की एक और कोशिश की थी।

उसने खाने के पैसे चुकाए और साथ में 500 रुपये का एक नोट सुनील की ओर बढ़ाते हुए कहा, “ये तुम्हारी मेहनत और तुम्हारे जज़्बे के लिए हैं। इन्हें मना मत करना।”

सुनील की आँखों में एक अनोखी चमक थी, जो शायद हज़ारों स्ट्रीटलाइट्स में भी न होती। वह बस “धन्यवाद मैडम” कहकर चुपचाप चला गया।

उस रात, जब अन्या ने खाना खाया, तो हर निवाले में उसे सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि मेहनत की महक, उम्मीद की गरमाहट और एक अधूरी किताब को पूरा करने की ज़िद का एहसास भी हुआ। उसका गुस्सा अब एक गहरे सम्मान में बदल चुका था।


इस कहानी से मिली सीख:

हमारी ज़िंदगी को आसान बनाने वाली हर सेवा के पीछे एक इंसान और उसके सपनों की कहानी छिपी होती है। अगली बार जब हम किसी को उसके काम से आंकें, तो एक पल रुककर उस वर्दी या उस यूनिफार्म के पीछे छिपे इंसान को देखने की कोशिश ज़रूर करें। शायद हमारी एक छोटी सी मुस्कान, थोड़ा सा सब्र, या दो मीठे बोल किसी के मुश्किल भरे दिन को आसान बना सकते हैं।



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