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बस में मिला एक पुराना नोटबुक

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दिल्ली की सर्दी, कोहरे से ढकी सड़कें और एक आम-सा बस का सफर। लेकिन इस सफर में कुछ ऐसा हुआ, जिसने मेरी ज़िंदगी को बदल कर रख दिया। ये कहानी है उस नोटबुक की, जो मैंने बस में पाया। एक पुरानी, थोड़ी मटमैली लेकिन दिलचस्प नोटबुक।

एक साधारण सुबह

सर्दियों की सुबह थी। घड़ी में सुबह के 8 बजे थे और मैं ऑफिस के लिए हमेशा की तरह लेट हो गया था। मैंने जल्दी से अपना बैग उठाया और पास वाली डीटीसी बस पकड़ने भागा। बस भीड़-भाड़ वाली थी, जैसे दिल्ली की हर लोकल बस होती है। मैं किसी तरह खड़ा हो गया, और खुद को बैलेंस करने की कोशिश करने लगा।

तभी मेरी नज़र एक सीट पर पड़ी। वो खाली थी, और उसके पास एक नोटबुक रखी थी। वो सीट शायद किसी ने छोड़ दी थी, लेकिन नोटबुक वहीं रह गई थी।

नोटबुक का पहला पन्ना

किसी ने मुझे रोका नहीं, इसलिए मैंने वो नोटबुक उठा ली। उसका कवर पुराना था, किनारों पर हल्की सी फटी हुई। कवर पर लिखा था, “मेरी ज़िंदगी के किस्से।”

मेरे दिल में जिज्ञासा जागी। जैसे ही मैंने पहला पन्ना खोला, उसमें लिखा था:
“अगर ये नोटबुक तुम्हें मिली है, तो इसे पढ़ना। शायद ये मेरी कहानी को ज़िंदा रख सके।”

प्रेम कहानी की शुरुआत

नोटबुक में लिखा था:
“मेरा नाम रोहित है। मैं वाराणसी का रहने वाला हूं। मेरी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत यादें गंगा के किनारे और घाटों पर बनी हैं। वहीं मेरी मुलाकात हुई थी सुमन से।”

रोहित ने विस्तार से बताया था कि कैसे उसने पहली बार सुमन को घाट पर देखा। वो अपने परिवार के साथ गंगा आरती के लिए आई थी। उसकी सादगी और मासूमियत ने रोहित का दिल जीत लिया।

सपनों और संघर्षों की कहानी

“सुमन और मैं जल्दी ही अच्छे दोस्त बन गए। लेकिन हमारे बीच की दीवारें बहुत बड़ी थीं – जाति, समाज, और मेरे कमाने की स्थिति।”

रोहित की कहानी धीरे-धीरे प्यार से संघर्ष की ओर बढ़ने लगी। उसने अपनी नौकरी के लिए मुंबई का रुख किया। लेकिन मुंबई में उसकी ज़िंदगी आसान नहीं थी। उसने कई छोटी-मोटी नौकरियां कीं, कभी होटल में वेटर, तो कभी एक दुकान में सेल्समैन।

सुमन का इंतजार

“हर रात मैं सुमन को एक पत्र लिखता था। लेकिन मेरे पास हिम्मत नहीं थी उन्हें भेजने की। मैं उसे बताना चाहता था कि मैं उसके लिए कुछ बनना चाहता हूं, ताकि उसे मुझ पर गर्व हो।”

ये लाइनें पढ़ते-पढ़ते मेरे रोंगटे खड़े हो गए। नोटबुक के पन्ने अब थोड़े धुंधले हो रहे थे, शायद आंसुओं के कारण।

अचानक का अंत

“एक दिन मुझे खबर मिली कि सुमन की शादी हो रही है। मैं टूट गया था। मैंने अपनी सारी चिट्ठियां जला दीं। लेकिन ये नोटबुक बचा ली, ताकि मेरी कहानी कहीं तो ज़िंदा रहे।”

यह पढ़ते ही मेरा दिल भारी हो गया। रोहित ने अपनी नोटबुक में अपनी पूरी ज़िंदगी समेट दी थी, लेकिन उसका अंत अधूरा सा था।


मेरा निर्णय

नोटबुक पढ़ने के बाद, मैं उसे उसके असली मालिक तक पहुंचाने की ठान चुका था। मैंने नोटबुक के आखिरी पन्ने को देखा। वहाँ रोहित का पता लिखा था – “गंगा घाट, वाराणसी।”


वाराणसी की यात्रा

कुछ दिनों बाद, मैंने छुट्टी ली और वाराणसी जाने का फैसला किया। घाटों पर जाकर मैंने हर किसी से रोहित के बारे में पूछा। आखिरकार, एक बुज़ुर्ग ने मुझे बताया,
“रोहित यहाँ नहीं रहता बेटा, लेकिन उसकी कहानियां अब भी लोग सुनाते हैं।”


कहानियों का जिंदा रहना

मैंने वो नोटबुक घाट पर रख दी, जहाँ से उसकी कहानी शुरू हुई थी। वहाँ लोगों ने उसे पढ़ा और एक-एक करके, रोहित की अधूरी कहानी को सबके दिलों में जगह मिल गई।


कभी-कभी ज़िंदगी अधूरी कहानियों को भी जिंदा रखती है। और शायद, वो कहानियां ही हमें इंसान बनाए रखती हैं।

ये बस में मिली नोटबुक ने मुझे सिखाया कि हर कहानी का अंत जरूरी नहीं है, लेकिन उसका जिंदा रहना ज़रूरी है।

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