मैं उस दिन थकान से चूर था। देर रात का समय था, और आखिरी ट्रेन पकड़ने के लिए स्टेशन की ओर भागा जा रहा था। दफ्तर का दिन लंबा रहा था, सिर भारी, और मन में बस घर पहुंचने की बेचैनी। स्टेशन की सीढ़ियाँ उतरते हुए देखा कि ट्रेन पहले से खड़ी है, दरवाज़े खुले हुए हैं।
सांसें तेज़ थीं, और दिल में एक ही फिक्र – कहीं ट्रेन छूट ना जाए। जैसे-तैसे दौड़ता हुआ आखिरी क्षण में ट्रेन के अंदर पहुँच ही गया। एक सीट मिल गई, और मैं खुद को थमाने की कोशिश कर रहा था। मन शांत हो ही रहा था कि अचानक मेरी नज़र सामने बैठे एक बुज़ुर्ग महिला पर पड़ी। वो मुझे देख रही थीं। चेहरा शांत, आँखों में अपनापन और होठों पर हल्की मुस्कान।
उनकी मुस्कान में एक सुकून था, ऐसा जैसे कुछ कहे बिना ही सब समझ गईं हों। मैं उनकी ओर देखा, और बिना कुछ कहे हल्का सिर हिला दिया। लगता था जैसे उनके पास एक अनकही कहानी थी, जो मेरी थकान और चिंता को दूर कर सकती थी। कुछ देर बाद उन्होंने धीरे से मुझसे पूछा, “बेटा, आज का दिन थोड़ा मुश्किल रहा क्या?”
मैं मुस्कुरा दिया, ये सोचते हुए कि मेरे चेहरे पर थकान इतनी साफ झलक रही होगी। “हाँ, ऐसा ही कुछ,” मैंने कहा।
वो समझ गईं। उन्होंने अपना बैग खोला और उसमें से एक छोटा सा लाल सेब निकाल कर मेरी ओर बढ़ा दिया। “ये लो,” उन्होंने कहा, “कभी-कभी दिन मुश्किल होते हैं, पर थोड़ा सा फल मन को हल्का कर देता है।
मुझे समझ नहीं आया कि हँसू या उनके इस अनजाने अपनापन को महसूस करूं। मैंने धन्यवाद कहते हुए सेब लिया। उस साधारण से सफर में उनका ये छोटा सा इशारा जैसे मेरी थकान को कुछ कम कर गया था। हम दोनों खामोशी में बैठे रहे, लेकिन उस चुप्पी में जैसे सुकून का अहसास था।
अगले स्टेशन पर उनका पड़ाव आ गया। वो उठीं, मुझे मुस्कुरा कर अलविदा कहा, और धीमे कदमों से उतर गईं। वो जाते-जाते मेरे मन में एक हल्केपन का एहसास छोड़ गईं।
अक्सर अनजाने लोग अनजाने वक्त में दिल छू जाते हैं। शायद ज़िंदगी के सफर में यही छोटे-छोटे पल असल में हमें आगे बढ़ाते हैं।
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