रात का आख़िरी पहर था। मस्जिद से अज़ान की हल्की-हल्की आवाज़ आ रही थी। चारों तरफ़ ईद(Eid) की रौनक थी, लेकिन फ़रहान की आँखों में नींद नहीं थी। वह अपने कमरे की खिड़की से बाहर देख रहा था, जहां बच्चे रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर हंस रहे थे, पटाखे चला रहे थे, लेकिन उसके दिल में एक अजीब-सा सन्नाटा था।
“अम्मी ठीक हो जाएं बस, मुझे इस ईद पर कुछ नहीं चाहिए,” उसने आसमान की तरफ़ देखते हुए अपनी आख़िरी दुआ माँगी।
बीती रात की वो तकलीफ़

फ़रहान की अम्मी, ज़रीन बेगम, पिछले कुछ दिनों से बीमार थीं। कल रात उनकी हालत अचानक बिगड़ गई थी। अस्पताल ले जाने के पैसे भी नहीं थे। अब्बू इस दुनिया में नहीं थे, और घर में कमाने वाला कोई नहीं था। फ़रहान अभी सिर्फ़ 16 साल का था, लेकिन हालात ने उसे उम्र से पहले बड़ा कर दिया था।
रात में जब अम्मी को तेज़ बुखार आया, तो वह मोहल्ले के डॉक्टर को बुलाने दौड़ा। डॉक्टर ने दवाई तो दी, लेकिन कहा, “अगर इन्हें कल तक अस्पताल नहीं ले गए, तो हालात बिगड़ सकते हैं।”
ईदी या इम्तिहान?
सुबह जब वह उठा, तो ईद की आवाजें हर तरफ़ गूंज रही थीं। लेकिन उसके घर में बस दुआओं की सरगोशी थी। उसके पास पैसे नहीं थे, लेकिन मोहल्ले में उसे हर साल अच्छी ईदी मिलती थी। वह सोचने लगा—क्या इस ईदी से अम्मी का इलाज हो सकता है?

“अगर हर कोई मुझे बस थोड़ी-सी भी ईदी दे दे, तो शायद अस्पताल का ख़र्च निकल आए,” उसके मन में यह ख्याल आया।
मोहल्ले में फ़रहान की दौड़
फ़रहान अपने फटे कुर्ते में सबसे मिलने निकला। हर किसी से मुस्कराते हुए गले मिलता और ईदी लेता। किसी ने 10 रुपये दिए, किसी ने 50। कुछ ने हंसी उड़ाई, “इस बार नए कपड़े नहीं लिए फ़रहान?” उसने बस सिर झुका लिया।
जब तक दोपहर हुई, उसके पास 1100 रुपये हो चुके थे। लेकिन अस्पताल के लिए कम से कम 3000 रुपये चाहिए थे। वह थककर मस्जिद की
सीढ़ियों पर बैठ गया। आँखों में आंसू थे।

“या अल्लाह, तूने ही कहा है कि जो तुझे पुकारे, तू उसकी सुनता है। मेरी अम्मी को बचा ले!” उसकी आँखें आसमान की तरफ़ उठीं।
एक अनजान हमदर्द
तभी एक बूढ़े आदमी ने उसके कांधे पर हाथ रखा, “क्या बात है बेटे? आज ईद के दिन उदास क्यों हो?”
फ़रहान की आँखों से आँसू छलक पड़े, और उसने अपनी पूरी कहानी सुना दी। वह आदमी कुछ देर सोचता रहा, फिर अपनी जेब से एक पुरानी गुलाबी थैली निकाली।
“ये रख लो बेटे, इसमें तुम्हारी अम्मी की सेहत की दुआ है।”

फ़रहान ने थैली खोली तो उसमें 2000 रुपये थे!
ईद की सबसे बड़ी खुशी
पैसे मिलते ही फ़रहान दौड़ता हुआ घर पहुंचा। अपने पड़ोसी की मदद से अम्मी को अस्पताल ले गया। डॉक्टर ने कहा, “अगर थोड़ी देर और हो जाती, तो हम कुछ नहीं कर पाते।”
शाम को जब फ़रहान अस्पताल के कमरे में बैठा था, तब अम्मी ने धीरे से उसकी उंगलियाँ थाम लीं, “अल्लाह ने हमारी दुआ सुन ली बेटा…”
उसकी आँखों से आंसू बह निकले, लेकिन इस बार वे आंसू ख़ुशी के थे। ईद की रौनक अब उसके लिए भी थी, क्योंकि उसकी अम्मी उसके साथ थीं।

“ईद मुबारक, अम्मी!”
ईद सिर्फ़ नए कपड़े और मिठाइयों का नाम नहीं, बल्कि प्यार, दुआओं और दूसरों की मदद करने का त्योहार है। फ़रहान की ईद में कोई शाही दावत नहीं थी, लेकिन उसे जो खुशी मिली, वह करोड़ों से भी ज़्यादा कीमती थी।
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