तिरंगे की शपथ - गणतंत्र दिवस

तिरंगे की शपथ – गणतंत्र दिवस

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उत्तर भारत के एक छोटे से गाँव वीरगांव में हर साल गणतंत्र दिवस के मौके पर तिरंगा फहराया जाता था। यह परंपरा गाँव के सबसे बुज़ुर्ग स्वतंत्रता सेनानी, रामधन चौधरी, निभाते थे। उनके हाथों से तिरंगे को फहरते देख, पूरा गाँव जोश और गर्व से भर जाता था।

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लेकिन इस बार, गणतंत्र दिवस से ठीक एक दिन पहले, एक भयानक घटना ने पूरे गाँव को हिलाकर रख दिया। गाँव के चौक में रखा राष्ट्रीय ध्वज चोरी हो गया।

एक युवा का प्रण

गाँव के युवाओं में से एक 20 साल का लड़का था, आदित्य, जो सेना में भर्ती होने का सपना देखता था। उसने आगे बढ़कर कहा,
“चाचा, मैं तिरंगे की शपथ खाता हूँ की मैं उसे वापस वापस लाकर चौक पर फहराऊँगा।”

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रामधन चौधरी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “बेटा, तिरंगा केवल झंडा नहीं है, यह हमारी आत्मा है। इसे वापस लाने के लिए हर संभव कोशिश करना।”

आदित्य ने गाँव के कुछ दोस्तों के साथ इस घटना की तह तक जाने का फैसला किया।

साजिश का पर्दाफाश

आदित्य और उसके दोस्त ने पास के कस्बे में जाकर पूछताछ की। उन्होंने पता लगाया कि कुछ संदिग्ध लोग, जो गाँव के बाहर बसे एक वीरान कारखाने में ठहरे थे, वही इस चोरी में शामिल हो सकते हैं।

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आदित्य ने साहस दिखाते हुए कारखाने के पास निगरानी की। उसने देखा कि वहाँ एक अपराधी गिरोह ने तिरंगे को एक कोने में फेंक रखा था। वे लोग इस ध्वज का इस्तेमाल तस्करी के लिए करने की योजना बना रहे थे, ताकि पुलिस का ध्यान न जाए।

“यह बर्दाश्त से बाहर है!” आदित्य ने गुस्से में कहा।
उसने अपने दोस्तों से कहा, “अगर हमने अभी कदम नहीं उठाया, तो ये लोग तिरंगे का अपमान करेंगे।”

बहादुरी और बलिदान

आदित्य और उसके दोस्तों ने रात के अंधेरे में गिरोह के ठिकाने पर घुसने की योजना बनाई।

  • वे चुपचाप कारखाने में घुसे।
  • आदित्य ने तिरंगे को देखा और चुपके से उसे उठाने की कोशिश की।

लेकिन तभी एक अपराधी ने उन्हें देख लिया। गिरोह के लोग हथियारों के साथ उनके पीछे भागे।
आदित्य ने अपने दोस्तों से कहा, “तुम सब तिरंगे को सुरक्षित लेकर गाँव जाओ। मैं इन्हें रोकता हूँ।”

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दोस्तों ने कहा, “नहीं, हम तुम्हें अकेला नहीं छोड़ सकते।”
लेकिन आदित्य ने दृढ़ता से कहा, “तिरंगा हर कीमत पर सुरक्षित रहना चाहिए। यह मेरी ज़िम्मेदारी है।”

आदित्य ने अपनी बहादुरी दिखाते हुए अपराधियों को गुमराह किया और उनके पीछे भागा।
उसने एक चट्टान से छलांग लगाई और अपराधियों को पकड़ने के लिए पूरी ताकत लगा दी। आखिरकार, उसने पुलिस को सूचना देने में सफलता पाई।

तिरंगे की शान

गणतंत्र दिवस की सुबह, गाँव के चौक पर फिर से तिरंगा फहराने की तैयारी की गई।
जब आदित्य और उसके दोस्त तिरंगे के साथ लौटे, तो पूरा गाँव उनके सम्मान में इकट्ठा हो गया।

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रामधन चौधरी ने आदित्य से कहा,
“तुमने आज साबित कर दिया कि सच्चा देशभक्त वही है, जो अपने कर्तव्य को निभाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।”

आदित्य ने गर्व से तिरंगे को खंभे पर फहराया। राष्ट्रीय गान की धुन के बीच तिरंगा लहराने लगा। गाँव के हर व्यक्ति की आँखों में गर्व और आँसू थे।

इस घटना के बाद, आदित्य को सेना में शामिल होने का मौका मिला। वह एक सच्चा सैनिक बनकर अपने देश की सेवा करता रहा।


“देशभक्ति केवल युद्ध के मैदान में नहीं, बल्कि हर उस जगह दिखती है, जहाँ आप अपने देश की शान और सम्मान के लिए खड़े होते हैं,” आदित्य ने कहा।

गणतंत्र दिवस अब गाँव के लिए केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि तिरंगे के प्रति सम्मान और देश के प्रति समर्पण का प्रतीक बन गया।


“तिरंगे की शान हमारे दिलों में बसती है। इसे बचाना, इसकी इज़्ज़त करना और इसके लिए खड़े होना ही सच्चा देशप्रेम है।”

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